देर हो जाती है।

Story by- jai chaurasiya

हम कुछ ही लोगों के बारे में लिखते है जिसने हमें बहुत ज्यादा प्रभावित किया हो या की असीमित प्यार किया हो, या की दुःख दिया हो, जिंदगी में बहुत से लोग आते है और चले जाते है पर कुछ लोग कभी नहीं जाते वो बस जाते है, हमारे दिल के एक कोने में घरौंदा बनाकर। 




वो दिन मुझे आज भी याद है..
मैने उसे बस स्टॉप पे ड्रॉप किया 
और वापस मुड़कर भी न देखा 
मुझे जल्दी थी जाने की शायद..!!


मै समझ नहीं पाता क्यों मैं हमेशा जल्दी में रहता हु..??
जल्दी में अक्सर छूट जाती है चीज़ें 
छूट जाते है लोग....
और हो जाती है देरी..!!!

उसकी मेरी हाल ही में दोस्ती हुई 
हमने साथ में एक लंबा सफर तय किया
हमने काफी बातें की या बहुत कुछ था उसके पास
जिसे उसने मुझसे साझा किया....
मैने भी उससे बात करना नहीं बंद किया 
मुझे उसकी बातें अच्छी लग रही थी
कैसे उसने मुझ पर भरोसा करके सारी बातें साझा की
मुझे भी सुनने में बहुत अच्छा लग रहा था
मैने उसके आधे दुःख को जान कर अपनी आधी समस्या को भूल दिया...!!!

वो इतनी मासूम सी लड़की कितनी मासूमियत से हर बात मुझसे सांझा कर रही थी... और मैं भी उतनी ही ईमानदारी से उसकी बातें सुन रहा था और उसकी मुस्कान वो तो भुलाई नहीं जा सकती। मैने उस दिन देखा कैसे लोग अपनी तकलीफ और समस्या दूसरों से छिपाने के लिए मुस्कुराते ही रहते है, वो हँसती बहुत थी शायद उसके पास कहने को भी बहुत कुछ था। लेकिन उसे कोई सही दोस्त मिला नहीं जिससे वो सब कुछ कह पाए मुझे लगा मुझे उसका दोस्त बनना चाहिए।

मैने जाना कैसे वो चीजों को व्यवस्थित करती है, कैसे वो अपने दर्द जो उसकी बीमारी से है उन्हें सहती है, कैसे वो हर वक्त हँसती रहती है, वो कैसे दूसरों का इतना ख्याल रखती है,और उसको किसी से कोई शिकायत भी नहीं, मुझे ऐसा लगा शायद मैं वो पहला शख्स हूं जिससे उसने अपना सब कुछ सांझा किया। वो गहरी बातों को बहुत आसानी से कह गयी।

हमारा सफर खत्म हुआ जो कि पूरे 48 घंटे का था, उसमें हमने कई घंटे बाते की, कुछ समय खामोश रहे लेकिन उन समय में मेरा पूरा ध्यान उसपे था कैसे मैं उसको अच्छा महसूस कराऊं। मुझे क्यों लगता था कि वो ठीक नहीं है, वो परेशान है शायद उसने सारी परेशानी मुझसे सांझा नहीं की।
अब मुझे उसे सही जगह बस स्टॉप में छोड़ना था और मेरी बस भी वही से थी, मै नहीं चाहता था कि वो मुझे जाते हुए देखे, मैने अपनी कई बस छोड़ दी मै उसे अकेला छोड़ना नहीं चाहता था लेकिन उसकी बस देरी से थी तो आखिरकार मुझे जाना पड़ा उसकी उलझन उसके चेहरे पर साफ दिख रही थी उसके लड़खड़ाती जुबान, अस्थिर पैर वो रोकना चाहती थी मुझे पर बोल नहीं पाई शायद उसे भी पता था कि जाना जरूरी है।

वहां से बस तक जाते हुए एक अजीब सी बेचैनी थी दिल में लेकिन मैने उसे मुड़कर नहीं देखा यदि मैं देख लेता तो शायद मैं जा नहीं पाता... बस में बैठते ही एक बात जो ध्यान पे आई काश मैने उसे गले लगाया होता तो चीजें ठीक हो सकती थी। शायद वो भी यही चाहती थी जो उसकी उलझन थी वो आंसुओं के साथ बाहर आ जाती और मेरी बेचैनी का भी जवाब मिल जाता। लेकिन मैं अक्सर जल्दी में रहता हूं और ये जल्दी मुझे हमेशा देर करा देती है।

उस दिन भी ऐसा ही हुआ, मै अपने स्टॉप पे उतर नहीं पाया क्योंकि मेरा मन बेचैन था और कही और ही था, और जहां मुझे जल्दी पहुंचना था वहां मै देर हो गया। और वो बेचैनी मन में सदैव रही कि क्यों मैने उसे यूं ही छोड़ दिया इतना भरोसा देकर अचानक से, क्यों उसे एक बार गले से न लगाया गले लगा लेने से ये मलाल नहीं रह जाता और उसकी उलझन भी मिट जाती फिर शायद वो सुकून से घर जाती और पूरे सफर में वो बेचैन नहीं रहती। 


बहुत सी बातें बिन कहे हो जाती 
गले लगाने से उसको...! 
दोस्त और भी गहरी हो जाती
गले लगाने से उसको...!!
हो तो ये भी सकता था कि
वो आखिरी मुलाक़ात होती...!
बातें बढ़ भी सकती थी
गले लगाने से उसको...!!



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