Take some time to understand yourself.
Story by- jai chaurasiya
जब मन उलझन में होता है, तो हम बाहरी दुनिया से अलग होने लगते है, हम लोगों से कटने लगते है हमे अकेलापन पसंद आता है। क्योंकि लोगों की उपस्थिति हमारी सोच में व्यवधान डालती है हमारा मन चाहता है नितांत एकांत जहां हमारा मन केवल स्वयं की सुने और हम बस शांति से सोचना चाहते है।
हम सही गलत कुछ भी सोच रहे हो, उस पल बस वही चलता रहता है हमारा मन गहन चिंतन में डूबा होता है और घंटों तक ये सवाल जवाब मन में चलता रहता हम खुद को ही गलत या सही साबित कर रहे होते है। अपने मन में चल रही इस प्रक्रिया में अभिभाषक भी हम है और आंकना भी हमे स्वयं को ही है। हम खुद को एक निष्कर्ष तक पहुंचाना चाहते है और शायद बाद में वही हमे अच्छा महसूस कराता है।
कभी हम खुद को चोट पहुंचाते तो अगले पल मरहम लगाते प्रतीत होते है। कभी हम स्वयं को ही गुनहगार बताते है तो अगले पल खुद के लिए ढाल बनकर खड़े हो जाते है। ये मन एक उधेड़बुन में रहता है लेकिन ये मात्र स्वयं की सुनना चाहता है।
हम खुद के साथ रहना चाहते है खुद से ढेरों बाते करना चाहते है, जिसमें सवाल और जवाब दोनों ही अपने हो। खुद को सम्हालना हो या गिराना, समझाना हो या डांटना या फिर खुद को निखारना ये सब हम खुद करना चाहते है।
हाँ, लोग जरूरी है हमारे लिए लेकिन जब उलझन में होते है तो उनसे दूरी बना लेते है, क्योंकि उस समय हमारा मन किसी की बात सुनने और समझने के लिए तैयार नहीं होता। इसलिए हम नहीं चाहते कि हमारे कारण किसी को तकलीफ हो, या फिर चिढ़ कर हम किसी को कुछ गलत बोल दे।
हमारी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रहता हम अपनी ही लड़ाई में व्यस्त रहते है। और अंततः हम खुद से हे लड़ाई लड़कर थक चुके होते है। और हमें जरूरत होती है एक गहरी नींद की जो एक नई शुरुआत करती है।
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