नया जन्म(New Life) | Heart touching story in Hindi
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दृढ रहें, और प्रयास करते रहें, देखें जो नाउम्मीदी और असफलता लग रही है वह कैसे शानदार सफलता में बदल जाएगी।
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यह दिल छूने वाली (heart touching) हिन्दी जीवन कहानी एक कुष्ठ रोगी (kusht rogi) और उसके साथ होने वाले व्यवहार पर है जिसकी मदद के लिए एक बच्चा और उसका परिवार आगे आया। उनके द्वारा निःस्वार्थ भाव से की गई सेवा से वह कुष्ठ रोगी (kusht rogi) भला-चंगा हो गया । इसके बाद को उसकी जिन्दगी पूरी तरह बदल गयी। इसे उसने अपना नया जन्म (new life) समझा। अब वह किसी को भी दुःख दर्द में देखता तो उसकी सहायता में दिल जान से जुट जाता। उसने अपने जीवन का ध्येय (motive of life) दूसरों की मदद करना बना लिया।
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गांव वाले कहते थे-‘अब रामचरण थोड़े ही दिनों का मेहमान है।’
राम-नाम के अतिरिक्त अब उसका कोई दूसरा सहारा नहीं था। भाई-भाभी के लिए तो वह कब का मर चुका था।
एक बार दूर से आया एक किशोर खेत के रास्ते जा रहा था। उसे ‘पानी… पानी’ की आवाज़ सुनाई दी। आज दिनभर रामचरण को पानी (water) भी नहीं मिला था। पानी की पुकार सुनते ही बालक मन में दया का स्त्रोत उमड़ पड़ा। उसके पांव उस hut की ओर खिंचने लगे। दूर से ही बदबू (odour) आ रही थी, किंतु हृदय की दया की सुवास से वह बदबू दब जाती थी। झोपड़ी (hut) में पहुंचते ही किशोर ने प्रश्न किया-‘क्यों पानी पीना है क्या? मैं अभी ला देता हूँ…..’
‘नहीं मेरे भाई!’ किशारे की ओर देखकर रामचरण की आंखों में आंसू आ गये। वह बोला-‘तू चला जा यहां से, मुझे अब मरने दे, कहीं तुझे रोग लग जाएगा तो…..।’ कहते हुए रामचरण फूट-फूट कर रोने लगा।
‘नहीं! नहीं!’ किशोर ने दृढ़ता से कहा-‘रोग लगता है तो भले लगे, किंतु मैं तुम्हें पानी बिना नहीं मरने दूंगा।’
कोने पड़ी टूटी हुई मटकी लेकर किशोर पास के कुएं पर गया और पानी लेकर आ पहुंचा। आकर उसने रामचरण को पानी पिलाया। रामचरण प्रसन्न हो गया, वह किशोर को आर्शीवाद देने लगा।
परंतु किशोर को अभी संतोष नहीं हुआ था। वह जल्दी से दौड़कर अपने घर गया। जाते ही उसे अपनी माँ से रामचरण के दुःख की बात कह सुनाई। माँ भी साक्षात् दया (kindness) की देवी थी। उसे कहा-‘बेटा, तूने जो किया, बहुत अच्छा किया, अब तुझे भी भूख तो लगी होगी, परंतु बेचारा रामकिशोर न मालूम कितने दिनों से भूखा पड़ा होगा, ये रोटियाँ और साग लेकर दौड़ते हुए जाकर उसे दे आ। बेटा! अपने पेट की तो कुत्ते भी चिन्ता करते हैं, जो दूसरे के पेट की चिन्ता करे, वही सच्चा मानव है।’
किशोर ने जाकर रामचरण को को भोजन दिया। रामचरण भोजन पा बड़ा ही प्रसन्न हुआ। उसको लगा-जैसे इस किशोर के रूप में साक्षात् भगवान ही उसे भोजन दे रहे हैं। रोटी खाते-खाते रामचरण सोच रहा था-‘मेरा प्यारा प्रभू प्रत्येक के हृदय में बैठा हुआ है। निराशा (disappointment) के घोर अंधकार में भी अमृत का काम करता है। मनुष्य तो मात्र अपनी ही चिन्ता करता है, मेरे राम तो सारी दुनिया को खिला रहे हैं।’
थोड़े ही दिनों मे रामचरण की चिन्ता का भार किशारे के माता-पिता ने ले लिया। माता-पिता और किशोर बालक-तीनों ने मिलकर रामचरण की सेवा शुश्रूषा शुरू की। दवाईयां और humanity के स्पर्श ने रामचरण धीरे-धीरे अच्छा होने लगा। अब रामचरण को अपने शरीर से चन्दन-सी शीतलता का अनुभव होने लगा।
भला-चंगा होने में 6-7 मास लग गये, किंतु अच्छा होने के बाद रामचरण पूरी तरह बदल चुका था व तो मानवता की प्रतिमूर्ति ही बन गया और किसी का भी दुःख दर्द सुनकर वह तत्काल ही सेवा में जुट जाता था। वह मानता था- ‘ईश्वर ने मुझे नया जन्म (new life) इसलिए दिया है कि मैं दूसरों के दुःख-दर्द समझूं।’
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दृढ रहें, और प्रयास करते रहें, देखें जो नाउम्मीदी और असफलता लग रही है वह कैसे शानदार सफलता में बदल जाएगी।
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नया जन्म | Heart touching story in Hindi
यह दिल छूने वाली (heart touching) हिन्दी जीवन कहानी एक कुष्ठ रोगी (kusht rogi) और उसके साथ होने वाले व्यवहार पर है जिसकी मदद के लिए एक बच्चा और उसका परिवार आगे आया। उनके द्वारा निःस्वार्थ भाव से की गई सेवा से वह कुष्ठ रोगी (kusht rogi) भला-चंगा हो गया । इसके बाद को उसकी जिन्दगी पूरी तरह बदल गयी। इसे उसने अपना नया जन्म (new life) समझा। अब वह किसी को भी दुःख दर्द में देखता तो उसकी सहायता में दिल जान से जुट जाता। उसने अपने जीवन का ध्येय (motive of life) दूसरों की मदद करना बना लिया।
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Story-'-'-'-"-"-"-"-"-*-"-"-"-"-"-*"
Attractive and smart नौजवान रामचरण को न जाने कैसे अचानक गलने वाला कुष्ठ रोग हो गया। रोग लगातार बढ़ता जा रहा था। Body से दुर्गन्ध (odour) फैल रही थी, वह सबके लिए untouchable सा बन गया था। रामचरण के माता-पिता का देहान्त हो चुका था। भाई-भाभी थे, किंतु वे भी अब उससे दूरी बनाने लगे थे। पड़ोस के लोग रामचरण को खेत में एक छप्पर में छोड़ आये थे। टूटी-फूटी चारपाई पर पड़ा-पड़ा रामचरण दिन काट रहा था। किसी को दया (sympathy) आ जाती तो थोड़ा पानी और रोटी के दो टुकड़े मिल जाते। असहास रामचरण केवल अपनी मृत्यु का इंतजार कर रहा था।गांव वाले कहते थे-‘अब रामचरण थोड़े ही दिनों का मेहमान है।’
राम-नाम के अतिरिक्त अब उसका कोई दूसरा सहारा नहीं था। भाई-भाभी के लिए तो वह कब का मर चुका था।
एक बार दूर से आया एक किशोर खेत के रास्ते जा रहा था। उसे ‘पानी… पानी’ की आवाज़ सुनाई दी। आज दिनभर रामचरण को पानी (water) भी नहीं मिला था। पानी की पुकार सुनते ही बालक मन में दया का स्त्रोत उमड़ पड़ा। उसके पांव उस hut की ओर खिंचने लगे। दूर से ही बदबू (odour) आ रही थी, किंतु हृदय की दया की सुवास से वह बदबू दब जाती थी। झोपड़ी (hut) में पहुंचते ही किशोर ने प्रश्न किया-‘क्यों पानी पीना है क्या? मैं अभी ला देता हूँ…..’
‘नहीं मेरे भाई!’ किशारे की ओर देखकर रामचरण की आंखों में आंसू आ गये। वह बोला-‘तू चला जा यहां से, मुझे अब मरने दे, कहीं तुझे रोग लग जाएगा तो…..।’ कहते हुए रामचरण फूट-फूट कर रोने लगा।
‘नहीं! नहीं!’ किशोर ने दृढ़ता से कहा-‘रोग लगता है तो भले लगे, किंतु मैं तुम्हें पानी बिना नहीं मरने दूंगा।’
कोने पड़ी टूटी हुई मटकी लेकर किशोर पास के कुएं पर गया और पानी लेकर आ पहुंचा। आकर उसने रामचरण को पानी पिलाया। रामचरण प्रसन्न हो गया, वह किशोर को आर्शीवाद देने लगा।
परंतु किशोर को अभी संतोष नहीं हुआ था। वह जल्दी से दौड़कर अपने घर गया। जाते ही उसे अपनी माँ से रामचरण के दुःख की बात कह सुनाई। माँ भी साक्षात् दया (kindness) की देवी थी। उसे कहा-‘बेटा, तूने जो किया, बहुत अच्छा किया, अब तुझे भी भूख तो लगी होगी, परंतु बेचारा रामकिशोर न मालूम कितने दिनों से भूखा पड़ा होगा, ये रोटियाँ और साग लेकर दौड़ते हुए जाकर उसे दे आ। बेटा! अपने पेट की तो कुत्ते भी चिन्ता करते हैं, जो दूसरे के पेट की चिन्ता करे, वही सच्चा मानव है।’
किशोर ने जाकर रामचरण को को भोजन दिया। रामचरण भोजन पा बड़ा ही प्रसन्न हुआ। उसको लगा-जैसे इस किशोर के रूप में साक्षात् भगवान ही उसे भोजन दे रहे हैं। रोटी खाते-खाते रामचरण सोच रहा था-‘मेरा प्यारा प्रभू प्रत्येक के हृदय में बैठा हुआ है। निराशा (disappointment) के घोर अंधकार में भी अमृत का काम करता है। मनुष्य तो मात्र अपनी ही चिन्ता करता है, मेरे राम तो सारी दुनिया को खिला रहे हैं।’
थोड़े ही दिनों मे रामचरण की चिन्ता का भार किशारे के माता-पिता ने ले लिया। माता-पिता और किशोर बालक-तीनों ने मिलकर रामचरण की सेवा शुश्रूषा शुरू की। दवाईयां और humanity के स्पर्श ने रामचरण धीरे-धीरे अच्छा होने लगा। अब रामचरण को अपने शरीर से चन्दन-सी शीतलता का अनुभव होने लगा।
भला-चंगा होने में 6-7 मास लग गये, किंतु अच्छा होने के बाद रामचरण पूरी तरह बदल चुका था व तो मानवता की प्रतिमूर्ति ही बन गया और किसी का भी दुःख दर्द सुनकर वह तत्काल ही सेवा में जुट जाता था। वह मानता था- ‘ईश्वर ने मुझे नया जन्म (new life) इसलिए दिया है कि मैं दूसरों के दुःख-दर्द समझूं।’
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